मन के भीतर मन| मन के भीतर आत्मा अर्थात मन ही आत्मा का घर है| जितना अभ्यास और वैराग्य आवश्यक है उतना ही मन के स्वरुप को जन लेना भी| मन - प्राण - वाक् सदा साथ रहते है, अविनाभाव है| मन चूंकि आत्मा का घर है, अत:आत्मा से जुड़े पूर्व संस्कार भी मन के द्वारा ही अभिव्यक्त होते है| मन सदा दो दिशाओं की और चलता है| एक बार विश्व की और तथा दूसरा आत्मा की और| भीतर तो इसके लिए कोई विकल्प नहीं है लेकिन बाहर का विश्व विकल्पों से भरा है| प्रत्येक इन्द्रिय के साथ अनेक विषय जुड़े रहते है| इन्द्रियां इन विषयों को मन पर लेकर आती है| मन इसी चक्र में तहत नहीं पाता| यही चंचलता की शुरुआत है| मनुष्य जीवन का लक्ष्य चूंकि मुक्ति की और बदना है, जो यह केवल मन के संयमन अर्थात चंचलता के पर जाने पर ही संभव है| प्रस्तुत ग्रन्थ में मन के विभिन्न धरातलों को समझने के लिए उसके व्यवहार पक्ष के उदहारण एवं चंचलता के सूत्र दिए गये है| इससे मन की चंचलता के संयमन का मार्ग प्रशस्त होगा|
मन: चंचलता के पार
The Mind: Across The Fiduciary (Hindi)
₹395.00
ISBN | 9788179067703 |
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Name of Authors | Gulab Kothari |
Name of Authors (Hindi) | गुलाब कोठारी |
Edition | 1st |
Book Type | Paper Back |
Year | 2018 |
Pages | 252 |
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