प्रस्तुत पुस्तक विशेष रूप में श्रमिक संघो की वैश्वीकरण के संदर्भ में चुनौतियों से जुडी हुई हैं| वैश्वीकरण के कारन अर्थव्यस्था में अनेक परिवर्तन आए हैं और निजीकरण व उदारीकरण के कारन श्रमिक संघ हैं| प्रस्थिति तथा सोच में बदलाव आया हैं| औद्योगिक क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण अंग श्रमिक संघ हैं| श्रमिक संघों की भूमिका सन १९९१ से पहले बहुत महत्वपूर्ण थी| औद्योगिक तनाव तथा अशांति हमें दिखाई देती थी| हड़ताल, धरना, जुलुस, नारेबाजी तथा तालाबंदी जैसी घटनाएँ आए दिन अख़बारों में प्रमुख स्थान पाती थी| सामूहिक सौदेबाजी के द्वारा मालिकों को अधिक सुविधाएँ एवं लाभ देने के लिए बाध्य किया जाता था| श्रमिक संघों के कई नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थो की पूर्ति भी करते थे| लेकिन वैश्वीकरण के कारन श्रमिक संघों की भूमिका में भी बदलाव आया है| श्रमिक असंतोष सीमित हुआ है| उद्योगपति स्वतः श्रमिकों के कल्याण का ध्यान रखते हैं| उन्हें बिना आन्दोलन के ही सभी सुविधाएँ प्राप्त हो जाती है तो ऐसी स्थिति में श्रमिक संघ की प्रासंगिकता भी कम हो जाती है| इसलिए श्रमिक संघो ने अपनी विचारधाराओं में परिवर्तन करके उद्योग हित सर्वोपरि रख अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना प्रारंभ कर दिया है| निजीकरण ने सरकारी उद्योगों को भी महत्वपूर्ण बना दिया है| सर्कारू उद्योग प्रतिस्पर्धा के कारन घाटे में चलने लग गए हैं| श्रमिक भी अपना कर्तव्य परम्परागत तरीके से निभाते हैं| उद्योगों का आधुनिकीकरण व नवीन तकनीकी का प्रयोग आसानी से नहीं हो पता| श्रमिक संघ, कई बार विरोध के स्वर प्रखर करते हैं| इससे उत्पादन की गुणवत्ता तथा उसमे वृद्धि नहीं हो पाती| इसीलिए नहीं आर्थिक निति के तहत सरकारी उद्योंगो को निजी क्षेत्र में दिया जा रहा है| इसी प्रक्रिया का विरोध श्रमिक संघ भी कर रहे हैं| प्रस्तुत पुस्तक में वैश्वीकरण के दौर में श्रमिक संघों की भूमिका का विश्लेषण सामाजशास्त्रीय संदर्भ में किया गया है, विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय श्रम संघ कांग्रेस (इंटक) तथा भारतीय मजदुर संघ (भामस) की रणनीतियों का विश्लेषण करते हुए|
श्रमिक संघ तथा वैश्वीकरण
Trade Unions And Globalization (Hindi)
₹695.00
ISBN | 9788179068632 |
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Name of Authors | Dr. Sunil Singh Daiya |
Name of Authors (Hindi) | डॉ. सुनील सिंह दईया |
Edition | 1st |
Book Type | Hard Back |
Year | 2020 |
Pages | 155 |
Language | Hindi |
आपने एम.ए. (समाजकार्य), डिप्लोमा इन लेबर लॉ (D.LL) तथा पीएच.डी. समाजशास्त्र में “श्रमिक संघ एवं विश्वव्यापीकरण” विषय पर की हैं| वर्तमान में LL.B के अन्तिम सेमेस्टर में अध्ययनरत हैं| आपकी विशेष रूचि समाज कल्याण तथा समाज के पिछडे व उपेक्षित वर्गों के कल्याण के प्रति निरन्तर रही है| डॉ. पूनम-कृष्ण दईया फैलोशिप ट्रस्ट के माध्यम से जरूरतमंद विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्ति हेतु आर्थिक सहयोग करते हैं|
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