भारतवर्ष में मछली पालन एक रोजगारपरक व्यवसाय, बढ़ती जनसंख्या के लिए सस्ता जैव प्रोटीनयुक्त आहार तथा उपलब्ध जल संसाधनों का उचित उपयोग करने का एक उपयुक्त विकल्प है| मछली पालन एक समुदाय विशेष का व्यवसाय था परन्तु इस क्षेत्र में होने वाले निरन्तर तकनीकी शोध एवं खोज ने इसके उत्पादन में गुणोत्तर बढ़ोतरी की तथा लोगों को व्यवसायिक रूप से आकर्षित किया है| भाषा समस्या के कारन तकनीकी शोध एवं खोज किसानो तथा मछली पालको की पहुँच से दूर रही तथा जिस स्तर पर यह लाभदायक होना चाहिये थी उस स्तर तक नहीं हो पायी अतएव लेखकों ने इसको किसानो अथवा मछली पालकों तक पहुँचाने के लिए अपने अनुभवों, क्षेत्र में कार्यरत व्यवसायियों के सुझावों तथा उपलब्ध साहित्य की सहायता से प्रस्तुत पुस्तक मछली पालन – एक परिचय की रचना करने का प्रयास किया है| इस पुस्तक में कुल 16 अध्याय है तथा इसके प्रथम अध्याय में भारतीय मात्स्यकी संसाधन एवं उनकी उपयोगी के बारे में जानकारी का विस्तृत विवरण दिया गया है तथा अन्य अध्यायों में मछली पालन के लिए आवश्यक विभिन्न आयामों जैसे की तालाब निर्माण, तालाब प्रबंधन, मृदा एवं जल गुणवत्ता, आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मछलियों की पहचान, मत्स्य बीज उत्पादन, मत्स्य बिज परिवहन, मत्स्य बीज पालन, मत्स्य आहार प्रबन्धन, मत्स्य रोग प्रबन्धन, मिश्रित मछली पालन, समन्वित मछली पालन, वयुश्वनी मछलीयों का पालन, मीठे पानी में झींगा पालन, अलंकारी मछली पालन तथा मछली पालन एवं सहकारिता का आलेख सरल, विस्तृत तथा क्रमबद्ध विधि से किया गया है|
मछाली पालन एक परिचय
An Introduction To Fisheries (Hindi)
₹395.00
ISBN | 9788179068342 |
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Name of Authors | N.C. Ujjain, Saini VP |
Name of Authors (Hindi) | एन.सी. उज्जैन , सैनी वी.पी. |
Edition | 1st |
Book Type | Paper Back |
Year | 2020 |
Pages | 395 |
Language | Hindi |
डॉ. एन.सी. उज्जैनिया, प्राध्यापक (जलीय जीवविज्ञान), वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत (गुजरात) ने एम.एस.सी. (सरोवर विज्ञानं एवं मत्स्यकी) में स्वर्ण पदक के सात राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर (राजस्थान) से 1997 में तथा पी.एच.डी. (मत्स्यकी संसाधन प्रबन्धन) भा.क्र.अनु.प. – केंद्रीय मत्स्यकी शिक्षण संस्थान, मुंबई (महाराष्ट्र) से 2003 में पूर्ण करने के पश्चात किंग फाहद पेट्रोलियम तथा मिनरल विश्वविद्यालय, दहरान (सऊदी अरब) में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा संचालित शोध परियोजना एवं कें.मा.शि.सं., मुम्बई में संचालित कई शोध परियोजनाओं तथा 2005 में इन्होंने कृषि विज्ञानं केंद्र (म.प्र.क्र.एवं प्रो.वि.) कोटा में सहायक प्राध्यापक विषय विशेषज्ञ/ (मत्स्य पालन) के रूप में मत्स्यकी विकास हेतु सेवाएं प्रदान की| डॉ. उज्जैनिया ने अपने 20 वर्ष के सेवाकाल में लगभग 101 शोध पत्र एवं शोध सारांशो का प्रकाशन राष्ट्रीय अव, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शोध ग्रंथों तथा संगोष्टियों में किया है साथ ही इन्होंने 4 पुस्तक, 7 पुस्तक अध्याय, 5 लोकप्रिय लेख, 4 प्रशिक्षण पुस्तक, 3 पुस्तिका तथा 2 परियोजना वर्णन का प्रकाशन भी किया है| डॉ. वी.पी. सैनी, प्राध्यापक (जलकृषि), महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान) ने एम.एस.सी (1990) तथा पी.एच.डी. (1994) सरोवर विज्ञान एवं मात्स्यकी विषय में राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर (राजस्थान) से तथा पर्यावरण अध्ययन में विशेष प्रमाण पत्र (1998) इंदिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से प्राप्त किया. डॉक्टर सैनी ने अपनी व्यवसायिक सेवायें 1994 में मत्स्य हेचरी विकास अधिकारी (रा.जजा.वी.) के रूप में शुरू की थी तत्पश्चयात 1996 में इन्होंने सरोवर विज्ञान एवं मात्स्यी विभाग (राजस्थान कृषि महाविद्यालय), उदयपुर में सहयक प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की| वर्ष 2008 में डॉ. सैनी ने फिलीपींस में कैटफिश प्रजनन पर प्रशिक्षण प्राप्त किया और वर्ष 2009-10 के दौरान स्कॉटलैंड में आणविक प्रजनन विषय पर पोस्ट-डॉक्टरेट अनुसंधान किया| डॉ. सैनी ने अपने 30 वर्ष के सेवाकाल में 102 शोध पत्रों का प्रकाशन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध ग्रंथों में किया है साथ ही इन्होंने 10 पुस्तके, 9 पुस्तक अध्याय, 12 लोकप्रिय लेख, 2 प्रशिक्षण पुस्तक, 6 परियोजना वर्णन का प्रकाशन के साथ – साथ 11 शोध परियोजनाओं का संचालन किया है|
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