प्रस्तुत पुस्तक एक अभिनव प्रयोग है| इसे 10 से 12 वर्ष की आयु के बच्चों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है| इसमे एक सारगर्भित आलेख है और आलेख - सार पर आधारित चुनी हुई लोककथा| साथ ही प्रत्येक अध्याय के अंत में एक प्रष्ट अभ्यास पर समर्पित है, जिसे विद्यार्थी को अपने माता - पिता के निर्देशन में पूर्ण करना है| हमारा मानना है की बच्चे अभी भी पुसतकें पढने में रूचि लेते है| उन्हें बसते से बाहर के संसार की भी आवश्यकता होती है| माता - पिता/ अभिभावक के रूप में आप यह तथ्य भली - भांति समझते ही होंगे की शिक्षा पेट भरने का साधन तो है लेकिन बाल - गोपालों के समग्र विकास में साहित्यिक पुस्तकों की भी बहुत महत्पूर्ण भूमिका होती है| अभी से ही अच्छा और स्तरीय साहित्य उनको मिलेगा तो उनकी समझ भी विकसित होगी| संस्कार विकसित होंगे| बालक के व्यक्तित्व के विकास हेतु उसके जीवन में माता - पिता के साथ - साथ शिक्षक एवं प्रेरक साहित्य का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है| इनमे से किसी भी एक का आभाव रहता है तो बालक का सामाजिक द्रष्टि से विकास अवरुद्ध तथा व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है| माता - पिता के बालक के प्रति उचित व्यवहार से ही बालक में सामाजिक हूणों विकास होता है और वह एक जिमेदार नागरिक बन परा है| लोककथाएं हमारी संस्कृत की संवाहक होती हैं| लोककथाएं का मूल उद्देश्य भले ही मनोरंजन रहा हो, लेकिन ये प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पीढ़ियों के संचित ज्ञान की गगाये है| लोककथाएं, लोक संस्कृत की कलात्मक अभिव्यक्ति हेमन| आज आवश्यकता इस बात की है की बच्चों को सही प्रेरणा, सही मार्ग – दर्शन व सही परामर्श के साथ स्वस्थ पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण मिले| उनमे वैज्ञानिक चेतना का विकास भी हो और मानवीय संवेदनाएं भी जाग्रत रहें ताकि उनके चरित्र को मानवीय रिश्तों की खुशबू और बंधुत्व की भावना महक सके| सामाजिक सरोकारों से जुड़े ये आलेख नई पीढ़ी के लिए आपके मध्यम से बहुत उपयोगी होंगे|
मनन
The Mind (Hindi)
₹595.00
ISBN | 9788179067451 |
---|---|
Name of Authors | Gulab Kothari |
Name of Authors (Hindi) | गुलाब कोठारी |
Edition | 1st |
Book Type | Paper Back |
Year | 2018 |
Pages | 156 |
पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी की पाठक – जगत में विशिष्ट पहचान है| साहित्य, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म और पत्रकारिता पर उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी है| मानस (बारह भागों में) उनका लोकप्रिय ग्रन्थ है| कोठारी की खंडकाव्य कृति ‘मैं ही राधा, मैं ही कृष्ण’ को भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है| उनको पत्रकारिता, साहित्य, संस्कृति तथा सामाजिक क्षेत्र मे योगदान के लिए कई प्रतिशिष्टतपुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए हैं| कोठारी को इंटरकल्चरल ओपन यूनिवर्सिटी नीदरलैंड्स, जनार्दनराय नगर राजस्थान विद्यापीठ यूनिवर्सिटी – उदयपुर सहित देश – विदेश के विश्वविद्यालयों ने डी.लिट्. की मानद उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया है कोठारी इंडिया सोसाइटी ऑफ़ इंजीनियर्स के सदस्य () हैं| उन्होंने वैदिक वाडमय में भाष्य और संस्कृत अनुवाद से हट कर कर्पुर – भाष्य का प्रणयन किया| वे जगदगुरु रामानन्दचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध पं. मधुसूदन ओझा वैदिक अध्ययन एवं शोधपीठ संस्थान के चेयरमैन हैं|
Reviews
There are no reviews yet.