राजस्थान की मरुभूमि का एक - एककण यहां के स्वाभिमानी, देशभक्त एवं अपनी मातृभूमि पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले रणथान्कुरो के रक्त से रंजित है| यहां की वीरांगनाओं ने जोहर की धधकती हुई ज्वाला में सहर्ष अपने प्राणों की आहुति देकर जो महान आदर्श प्रस्तुत किया, उसकी समता का उदहारण अन्य देशों के इतिहास में मिलना दुर्लभ है| भारतीय इतिहास में मेवाड़ का इतिहास में मिलना दुर्लभ है| भारतीय इतिहास में मेवाड़ का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है| यहाँ के शासकों ने देश, धर्म एवं स्व संस्कृति की रक्षा के लिए सर्वस्त्र त्याग कर इतिहास में अनुपम उदहारण प्रस्तुत किये है| इन शासकों में महाराणा कुम्भा का नाम विशेष उल्लेखनीय है| इनके विशिष्ट व्यक्तित्व के कारन भारतीय इतिहास में कुम्भा की तुलना सम्राटअशोक, समुद्रगुप्त और परमार रजा भिज से की जा सकती है| महाराणा कुम्भा ने विजय अभियान से मेवाड़ राज्य का विस्तार किया| मेवाड़ में मुस्लिम आक्रमणों को रोककर कुम्भा ने सम्पूर्ण जगत में ख्याति प्राप्त की| मालवा के विरुद्ध मेवाड़, गुजरात तथा दिल्ली में गुट बनाया तथा कुम्भा को 'हिन्दू सुरवाण' की पदवी से विभूषित किया| कुम्भा ने अनेक स्थान को जीता और सारंगपुर के पास मालवा की सेना को परास्त किया| इस तरह कुम्भा के विजय अभियानों का वर्णन इस पुस्तक में किया गया है|
महाराणा राजसिंह (1629 से 1680 ई.)
Maharana Raj Singh (1629 to 1680 AD) (Hindi)
₹55.00
ISBN | 9788179063736 |
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Name of Authors | Dr. Nilam Koshik |
Name of Authors (Hindi) | डॉ. नीलम कोशिक |
Edition | 1st |
Book Type | Paper Back |
Year | 2014 |
Pages | 36 |
Language | Hindi |
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