जावर मूलतः खनन गतिविधियों पर आधारित एक औघोगिक नगर रहा है| यहाँ गैलेना (सीसा एवं चाँदी का खनिज) एवं स्फेलेराइट (जस्ता का खनिज) प्रचुरता में पाये जाते है| यहाँ की खानों से लगभग 3000 वर्सो से खनिज निकाल जा रहा है| फ्रीस्तोन महोदय के अनुसार जावर में 13वीं से 18वीं सदी के दौरान लगभग एक लाख तन जस्ता का उत्पादन किया गया| उत्पादित धातु के एक बड़े भाग को यूरोपीय देशों में निर्यात किया गया| यहाँ इसकों तांबा के साथ मिलाकर पीतल बनाया गया|पीतल में जब सता की मात्र 40 से 45 प्रतिशत तक मिलाया जाता था तब यह स्वर्ण की भांति चमकने लगता था| शायद हमारे आख्याण में परस पत्थर से स्वर्ण बनाने की चर्चा इसी रूप में की गयी हो| तैयार पीतल से औघोगिक क्रांति के दौरान वहां बड़ी - बड़ी मशीने बनायीं गयी| इस प्रकार यूरोप की औघोगिकक्रांति में जावर का एक अहम् योगदान रहा है| प्रस्तुत पुस्तक छः अध्यायों में समाहित की गयी है| अध्याय का विभाजन इस प्रकार किया गया है की क्षेत्र के संभवतः सभी इतिहासिक पक्षों को शामिल किया जा सके| इससे अंतर्गत भौगोलिक एवं सामाजिक आयाम, शिलालेख, मंदिर व् मूर्तियाँ, खनन व प्रगलन, क्रमबद्ध ऐतिहासिक घटनाएँ एवं विभिन्न महाराणाओं से जावर का संबंध एवं जावर का प्रगलन से क्षेत्र में अहम योगदान, आर्थिक व् साहित्यक योगदान को समाहित किया गया है| पुस्तक के अंत में जावर से जुड़े आख्यानों एवं औदिच्य ब्रह्मण के पोथी का कुछ अंश परिशिष्ट के रूप में दिया गया है|
जावर का इतिहास [स्तापत्य एवं जस्ता प्रगलन]
History Of Zavar [Stagnation And Zinc Smelting] (Hindi)
₹450.00
ISBN | 9788179065488 |
---|---|
Name of Authors | Arvind Kumar |
Name of Authors (Hindi) | अरविन्द कुमार |
Edition | 1st |
Book Type | Hard Back |
Year | 2019 |
Pages | 221 |
Language | Hindi |
Reviews
There are no reviews yet.