देश की मुख्य सभ्यता से अलग हटे हुए स्थानों पर यहाँ कि आबादी से दूर जो लोग प्राचीन ठंग पर जीवन व्यतीत कर रहे है उन्हें आदिवासी कहा जाता है| इनमे से कई जातियां आज अस्प्रश्य मानी जाती है| इनका पिछडापन इनके प्राचीन होने की तरफ संकेत करता है| ऐसे समस्त लोगो और विशेषकर आदिवासियों को आगे बढाने का कार्य इस समय भारत के मुख्य कार्यो में से एक है| भारत में संविधान की पांचवी और अनुसूची के प्रावधान आदिवासियों को उनकी भूमि पर अधिकार की एतिहासित गारटी देते है| और जहा तक जनजातियों के अधिकारों का प्रशन है, इन अनुसूचियों को 'संविधान के भीतर संविधान' समझा जाता है| पंचायत (अनुसूचित जाती विस्तार) अधिनियम (पेसा) जनजातीय लोगो को प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर स्व-शासन के बारे में व्यापक अधिकार प्रदान कर्ता है|वन अधिकार अधिनियम भी साझा संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार प्रदान कर्ता है| यह एक तथ्य है की उधोग लगाने, खनन कार्यो, बड़े बंधो के निर्माण जैसे विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए जनजातियों को विस्थापित और अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है| राजस्थान में अनुसूचित जाती और जनजाति कुल जनसँख्या के लगभग ३० प्रतिशत है| ये जातिया राजस्थान में एक पट्टी के रूप में बसी है जिसे जनजाति पट्टी कहते है| यह पट्टी सिरोही जिले से लगाकर उदयपुर, डूंगरपुरबांसवाडा, चित्तोड़गढ़ भीलवाडा, झालावाडा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर अलवर, भरतपुर जयपुर, टोंक,अजमेर, जालोर, जोधपुर बाड़मेर, नागोर, सीकर और झुझुन्नु तक फेलि है| राजस्थान के मानचित्र को देखे तो यह स्पष्ट होता है की अरावली पर्वत श्रंखला तथा उसके दक्षिण पूर्वी भाग में एने जन संख्या, सर्वाधिक है| सबसे अधिक भील, जाती बांसवाडा,डूंगरपुर उदयपुर,चितौड,भीलवाडा में है| जन जाती के डामोर डूंगरपुर मे ही केन्द्रित है|
जन जातीय रूढियां एवं विधि दक्षिणी राजस्थान के सन्दर्भ में
Ethnic Trends And Law With Reference To Southern Rajasthan Open (Hindi)
₹495.00
ISBN | 9788179065020 |
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Name of Authors | Dr. Rajshree Choudhary |
Name of Authors (Hindi) | डॉ. राजश्री चौधरी |
Edition | 1st |
Book Type | Hard Back |
Year | 2015 |
Pages | 91 |
Language | Hindi |
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