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जन जातीय रूढियां एवं विधि दक्षिणी राजस्थान के सन्दर्भ में

Ethnic Trends And Law With Reference To Southern Rajasthan Open (Hindi)

495.00

ISBN: 9788179065020
Categories:
ISBN 9788179065020
Name of Authors Dr. Rajshree Choudhary
Name of Authors (Hindi) डॉ. राजश्री चौधरी
Edition 1st
Book Type Hard Back
Year 2015
Pages 91
Language Hindi

देश की मुख्य सभ्यता से अलग हटे हुए स्थानों पर यहाँ कि आबादी से दूर जो लोग प्राचीन ठंग पर जीवन व्यतीत कर रहे है उन्हें आदिवासी कहा जाता है| इनमे से कई जातियां आज अस्प्रश्य मानी जाती है| इनका पिछडापन इनके प्राचीन होने की तरफ संकेत करता है| ऐसे समस्त लोगो और विशेषकर आदिवासियों को आगे बढाने का कार्य इस समय भारत के मुख्य कार्यो में से एक है| भारत में संविधान की पांचवी और अनुसूची के प्रावधान आदिवासियों को उनकी भूमि पर अधिकार की एतिहासित गारटी देते है| और जहा तक जनजातियों के अधिकारों का प्रशन है, इन अनुसूचियों को 'संविधान के भीतर संविधान' समझा जाता है| पंचायत (अनुसूचित जाती विस्तार) अधिनियम (पेसा) जनजातीय लोगो को प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर स्व-शासन के बारे में व्यापक अधिकार प्रदान कर्ता है|वन अधिकार अधिनियम भी साझा संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार प्रदान कर्ता है| यह एक तथ्य है की उधोग लगाने, खनन कार्यो, बड़े बंधो के निर्माण जैसे विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए जनजातियों को विस्थापित और अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है| राजस्थान में अनुसूचित जाती और जनजाति कुल जनसँख्या के लगभग ३० प्रतिशत है| ये जातिया राजस्थान में एक पट्टी के रूप में बसी है जिसे जनजाति पट्टी कहते है| यह पट्टी सिरोही जिले से लगाकर उदयपुर, डूंगरपुरबांसवाडा, चित्तोड़गढ़ भीलवाडा, झालावाडा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर अलवर, भरतपुर जयपुर, टोंक,अजमेर, जालोर, जोधपुर बाड़मेर, नागोर, सीकर और झुझुन्नु तक फेलि है| राजस्थान के मानचित्र को देखे तो यह स्पष्ट होता है की अरावली पर्वत श्रंखला तथा उसके दक्षिण पूर्वी भाग में एने जन संख्या, सर्वाधिक है| सबसे अधिक भील, जाती बांसवाडा,डूंगरपुर उदयपुर,चितौड,भीलवाडा में है| जन जाती के डामोर डूंगरपुर मे ही केन्द्रित है|

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